एक ग़ुलाम था एक दिन वह
काम पर नहीं गया.मालिक ने
सोचा इस कि तन्खोआह बढ़ा
दी जाये तो यह और दिल्चसपी
से काम करेगा.अगली बार जब
उस को तन्खोआह से ज़्यादा
पैसे दिये तो उस ने कुछ नही
बोला ख़ामोशी से पैसे रख लिये
..........कुछ दिन बाद वह फिर
ग़ैर हाज़िर हो गया.मालिक को
बहुत ग़ुस्सा आया और उस ने
बढ़ी हुई तन्खोआह कम करदी
और उस को पहले वाली ही
तन्खोआह दी.
..........ग़ुलाम ने तब भी
खामोशी ही इख़्तयार की.
और ज़बान से कुछ ना
बोला....तब मालिक को
बड़ा ताज्जुब हुआ. उस
ने ग़ुलाम से कहा की जब
मै ने तुम्हारे ग़ैर हाज़िर होने
के बाद तुम्हारी तन्खोआह
बढा कर दी .तब तुम कुछ
नही बोले और आज तुम्हारी
ग़ैर हाज़री पर तन्खोआह कम
कर के दी तब भी तुम खामोश
ही रहे.इस की क्या वजह है..?
.....ग़ुलाम ने जवाब दिया
जब मै पहले ग़ैर हाज़िर हुआ
था तो मेरे घर एक बच्चा
हुआ था आप ने तन्खोआह
बढ़ा कर दी मै समझ गया..
अल्लाह ने इस के हिस्से
का रिज़क़ भेज दिया.इस की
किसमत का रिज़क़ खुदा
ने भेज दिया.
....और जब दोबारा मै ग़ैर
हाजिर हुआ तो जनाब मेरी
वाल्दाह का इन्तिक़ाल
हो गया था..जब आप ने
मुझ को तन्खोआह कम दी
तो मै ने यह मान लिया की
मेरी मॉं अपने हिस्से का
रिज़क़ ले गयीं..
........फिर मै इस रिज़क़ की
ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ
जिस का ज़िम्मा ख़ुद ख़ुदा
ने ले रखा हो...
सब को शेयर करें बहुत मेहनत
से लिखा है..
: सदक़ा : जब इंसान अपने हाथ से सदक़ा देता है, तो वो सदक़ा उस वक़्त 5 जुमले कहता है .
(1) मैं फानी माल था तूने मुझे ज़िन्दगी देदी .
(2) मैं तेरा दुश्मन था अब तूने मुझे दोस्त बना लिया .
(3) आज से पहले तू मेरी हिफाज़त करता था, अब मैं तेरी हिफाज़त करूँगा .
(4) मैं हक़ीर था तूने मुझे अज़ीम बना दिया .
(5) पहले मैं तेरे हाथ में था अब मैं "अल्लाह" के हवाले हूँ .
(हर अच्छी बात को दूसरों तक पहुँचाना भी सदक़ा है .)
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हदीस :-जब तुम अपने बिस्तर पर जाओ तो सुराः फ़ातिह और सूरह इखलास को पढ़ लिया करो, तो मौत के अलावा हर चीज़ से बेखौफ हो जाओगे.
वह दिन क़रीब है जब आसमान पे सिर्फ एक सितारा होगा. तौबा का दरवाज़ा बंद कर दिया जायेगा. क़ुरआन के हरूफ मिट जायेंगे , सूरज ज़मीन के बिलकुल पास आ जायेगा., 
हुज़ूर सलल्लाहू अलैह वसल्लम ने फ़रमाया "बेनूर हो जाये उसका चेहरा जो कोई मेरी हदीस को सुन कर आगे न पोहचाए.

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